गुरु के प्रति समर्पण भाव सुरदासजी से सिखें । गोस्वामी श्रीमथुरेश्वरजी के जन्मोत्सव पर मुरलीमनोहर व्यास का प्रतिपादन

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चंद्रपूर :हमारे अध्यात्म दर्शन में गुरु और भगवान में भेद नही है। गुरु कृपा से गोविंद मिलते है। अपने गुरु के प्रति समर्पण कैसा हो यह सिखना हो तो सन्त शिरोमणी सूरदासजी से सिखें। उन्होंने अपने गुरु गुसांईजी श्री विठ्ठलनाथजी के संदर्भ में एक पद गाया, ” यही हमारे है श्रीनाथजी ” । वे कहते हैं, गुसांईजी और श्रीनाथजी में भेद नही है अपितु हमारे लिए तो गुसांईजी ही श्रीनाथजी है। उन्ही गुसांईजी के वंशज गोस्वामी मथुरेश्वरजी महाराजश्री के शुभ संकल्प से चंद्रपुर में श्री गोवर्धननाथ हवेली की स्थापना हुई।आज चैत्र शुक्ल एकादशी के दिन श्री मथुरेश्वरजी महाराजश्री का 87 वां जन्मोत्सव हम मना रहे हैं। इस उम्र में भी महाराजश्री सक्रिय है। उनके स्वस्थ जीवन की हम मंगल कामना प्रेषित करते हैं। ऐसे भावपूर्ण विचार चंद्रपुर के आध्यात्मिक चिंतक तथा साहित्यकार मुरलीमनोहर व्यास ने प्रतिपादित किये।
श्री गोवर्धननाथ हवेली चंद्रपुर में चैत्र शुक्ल एकादशी गुरुवार दि 19 अप्रैल को गोस्वामी मथुरेश्वरजी महाराजश्री का 87 वां जन्मोत्सव तथा एकादशी सत्संग समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर श्री यमुनाजी के पाठ तथा गोपी मंडल के भजन हुये। फुल मंडली में श्री गोवर्धननाथ प्रभु को फुलों के बंगले में विराजमान कर मुखियाजी किसनभाई पंचोली ने आरती की।
व्यासजी ने “यही हमारे श्रीनाथजी” इस पद का विश्लेषण करते हूये कहा , सूरदासजी गुरु गुसांईजी और श्रीनाथजी में भेद नही मानते। जीवन में योग, जप , तप, तिरथ, व्रत,नियम आदि के अनेक प्रकार है , उनकी महिमा अपार है, लेकिन भगवद् सेवा और गुरु सेवा करना , गुरु आज्ञा का पालन करना, योग, जप,तप आदि से भी अधिक प्रभावी है। यही शास्त्रों का सार है।
श्री गोवर्धननाथ हवेली चंद्रपुर में प्रत्येक एकादशी के दिन संध्या 5 बजे से 6 बजे तक मुरलीमनोहर व्यासजी का सत्संग होंगा। सत्संग प्रेमी नागरिक उपस्थित रहकर लाभ लेवें ऐसा आवाहन संयोजक श्री गोवर्धननाथ हवेली ट्रस्ट द्वारा किया गया है।