सुरक्षा चूक नहीं आसां…!

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अब क्या मोदी जी को विरोधियों के साथ अपराधी कौन, अपराधी कौन खेलना पड़ेगा? बताइए! सेंध लगी संसद की सुरक्षा में। और विरोधी मांग क्या कर रहे हैं? गृहमंत्री अमित शाह जवाब दें। यह मांग भी इस मुद्रा में कर रहे हैं, जैसे मोदी जी पर बड़ा एहसान कर रहे हों, जो उनसे जवाब नहीं मांग लिया। वर्ना उनके राज में सुरक्षा में सेंध लगी है। शाह जी तो फिर से सिर्फ गृहमंत्री ही हैं, जबकि अब तो ऑफिशियली देश में मोदी सरकार चल रही है। फिर सुरक्षा में सेंध लगे तो, जवाब मोदी जी से क्यों नहीं मांगा जा सकता?

खैर! विरोधियों को जवाब अमित शाह से भी मिलने वाला नहीं है। फिर चाहे कितने ही पांव पीट लें — शाह जी ने संसद में जवाब के लिए नहीं बोल दिया तो, नहीं। ज्यादा ही करेंगे, तो सस्पेंशन मिल सकता है, पर शाह जी से जवाब नहीं मिलेगा। जब मोदी जी मणिपुर पर अस्सी दिन कुछ नहीं बोलने का रिकॉर्ड बना चुके हैं, तो अमित शाह क्या दो-चार हफ्ते कुछ न बोलने का भी रिकॉर्ड नहीं बना सकते हैं। आखिरकार, नंबर दो पर तो वह भी आते ही हैं। फिर अमित शाह क्या सिर्फ इसलिए जवाब दे देंगे कि विपक्ष वाले जवाब दो, जवाब दो का शोर मचा रहे हैं।

माना कि शाह जी देश के गृहमंत्री हैं। अंदरूनी सुरक्षा का मामला गृहमंत्री के डिपार्टमेंट का होता है। और जब संसद की सुरक्षा में सेंध लगी, संसद कम-से-कम देश में तो आती ही थी। सब सही है। पर क्या सिर्फ इतने से ही गृहमंत्री सवालों के जवाब देने के लिए खड़ा हो जाएगा? आखिरकार, सेंध तो संसद की सुरक्षा में लगी है। संसद की भी तो कोई सत्ता है, कोई कीमत है, कोई स्वायत्तता है। उसकी सुरक्षा में सेंध लगी है, तो संसद खुद देखेगी। संसद खुद समझेगी कि उसे क्या करना है, क्या नहीं करना है?

कार्रवाई सुरक्षा चूक करने वालों के पास बनवाने वाले मोदी जी की पार्टी के सांसद के खिलाफ करनी है या शाह जी के जवाब की मांग का शोर मचाने वाले विपक्षी सांसदों के खिलाफ। और हां! संसद कवर करने वाले पत्रकारों आदि, आदि के खिलाफ भी। हां! सब कुछ के बाद अगर संसद को लगेगा, तो जरूर वह अमित शाह से पूछ सकती है, बल्कि पूछेगी ही कि वह और क्या कर सकती है? आखिरकार, शाह जी देश के गृहमंत्री हैं।

देश के गृहमंत्री हों या प्रधानमंत्री, उनसे कम-से-कम विपक्ष वालों का सवाल पूछना नहीं बनता है। और बेशक, अपने वाले तो सवाल खैर पूछने ही क्यों लगे? पर अपने हों या पराए, देश के इतने बड़े नेताओं से किसी को सवाल पूछने की जरूरत ही क्या है? आखिरकार, सवाल कितनी ही नरमी से पूछा जाए, उससे आती तो कसूरवार ठहराने की ही बू है। बताइए, इस मामले में कोई कैसे जेठा भाई तो जेठा भाई, छोटा भाई तक को कसूरवार ठहराने की जुर्रत कर सकता है। क्या उनसे पूछकर संसद की सुरक्षा में चूक हुई थी या उनके कहने से चूक हुई थी? वह भी नहीं, तो क्या उनके लिए सुरक्षा चूक हुई थी, जो उन पर जिम्मेदारी आएगी।

रही नौजवानों के बगावत पर उतर आने की बात, तो उसके लिए तो मोदी जी-शाह जी को कोई जिम्मेदार बता ही नहीं सकता है। अव्वल तो नौजवानों के बगावत पर उतर आने की बात ही गलत है। पांच-सात नौजवान भगतसिंह की नकल पर बम की जगह धुंए के धमाके से बहरों को सुनाने के लिए संसद के अंदर-बाहर कूदे हैं, तो करोड़ों नौजवानों ने अभी-अभी चुनाव में मोदी जी के चेहरे पर और शाह जी की बात पर वोट दिया है या नहीं!

और अगर नौजवान बगावत पर उतर भी आए हैं तब भी, इसके लिए जिम्मेदार कौन है? मोदी जी या उनके विरोधी? आखिरकार, नौजवान तो नौजवान हैं, आसानी से गुमराह हो जाते हैं। पर उन्हें गुमराह कौन कर रहा है? कौन नौजवानों के दिमाग में इस तरह के ख्याल भर रहा है कि उनके लिए कोई नौकरी नहीं है, उनका कोई भविष्य नहीं है, वगैरह, वगैरह? आज नहीं है तो क्या पूरे अमृतकाल में ही नहीं है?

जाहिर है कि मोदी जी या उनके भक्त तो नौजवानों के दिमाग में इस तरह के नकारात्मक विचार भर नहीं रहे हैं। वे तो नौजवानों ही क्या, सब के दिमाग में पम्प से पॉजिटिविटी की ही हवा भरने में लगे रहते हैं। कभी-कभी तो उनका जोश इतना ज्यादा होता है कि पॉजिटिविटी की हवा ज्यादा होने से किसी-किसी का दिमाग फट भी जाता है, पर वे पॉजिटिविटी की गर्म हवा भरने में कमी नहीं होने देते। फिर दोषी कौन है? जाहिर है कि विपक्ष वाले ही हैं, जो नौजवानों को यह भूलने ही नहीं देते हैं कि उनके लिए कोई काम ही नहीं है, उनका कोई भविष्य ही नहीं है।

भक्तगण और उनके प्रभु तो कभी गाय तो, कभी मंदिर, कभी मस्जिद की जगह पर ही मंदिर, तो कभी मदरसे की जगह पर ही अंगरेजी स्कूल, कभी बुलडोजर, तो कभी घर वापसी, दस साल में क्या-क्या सामने नहीं लाए हैं कि नौजवान पॉजिटिवली पीछे लगे रहें, रोटी-रोजगार के चक्करों से बचे रहें। पर पॉजिटिविटी तो तब काम करेगी, जब विरोधी काम करने देंगे। वे तो नौजवानों को यह कह-कहकर भड़काया और करते हैं कि वे कुछ भी सामने रखें, तुम अपने रोजगार की बात पर अड़े रहना! जैसे नौजवानों के लिए रोजी-रोटी ही सबसे जरूरी हो! ऐसे में कोई नौजवान बहक जाए, सहज संभाव्य है। देखा नहीं, कैसे विपक्ष वाले इन सिरफिरों को यह कहकर और उकसा रहे हैं कि यह तो रोजी-रोटी नहीं होने पर बगावत है? जवाब मांगना है, तो उनसे मांगो जो अब भी रोटी-रोजगार की रट लगाए हुए हैं, जबकि इससे देश की संसद की सुरक्षा खतरे में पड़ रही है।

✒️व्यंग्य:-राजेंद्र शर्मा(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)