किसान फिर आ रहे हैं!

94

किसान फिर आ रहे हैं। किसान फिर दिल्ली की तरफ आ रहे हैं। मुश्किल से दो साल पहले ही तो वापस गए थे; साल भर से ज्यादा दिल्ली की सीमाओं पर जमे रहने के बाद। ट्रैक्टरों पर सवार होकर, अब फिर वापस आ रहे हैं। नहीं, नहीं, हम ऐसा नहीं कह रहे हैं कि किसानों को दिल्ली आने का, हक नहीं है। बेशक, किसानों को दिल्ली आने का हक है। बार-बार आने का हक है। दो साल बाद क्या, हर साल आने का भी हक है। आखिरकार, मोदी जी देश में अमृतकाल लाए हैं। और अमृतकाल में भी सिर्फ रामलला को ही थोड़े ही लाए हैं। डैमोक्रेसी का अम्मा काल भी लाए हैं। डैमोक्रेसी के अम्मा काल में किसान दिल्ली तो आ ही सकते हैं। पर सवाल ये है कि किसान आ क्यों रहे हैं और वह भी दोबारा? आखिरकार, मोदी जी ने किसानों के लिए क्या-क्या नहीं किया है! और तो और किसान सम्मान कहकर, पांच सौ महीना का टिप तक दिया है।

हां! एक जरा-सी एमएसपी नहीं दे पाए हैं। पर किसानों के लिए एमएसपी का फार्मूला देने वाले, एमएस स्वामीनाथन को ‘भारत रत्न’ भी तो मोदी जी ने ही दिया है। और हां! किसानों की आमदनी दोगुनी भी नहीं कर पाए हैं, पर किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह को ‘भारत रत्न’ भी तो दिया है। किसान के लिए सम्मान बड़ा है या फसल का भुगतान? सच्चा भारतीय किसान तो सम्मान ही चुनेगा। अब तो जयंत चौधरी को मोदी जी की सरकार के काम-काज में बड़े चौधरी की कार्यशैली की झलक भी दिखाई देने लगी है; पर किसान फिर भी आ रहे हैं। छोटे चौधरी की तरह मोदी जी का थैंक यू करने नहीं, थू-थू करने आ रहे हैं। जो मोदी जी रामलला को लाए हैं और ताजा-ताजा, पिछले महीने ही लाए हैं, उनकी थू-थू करने! यह हिंदूविरोधी यानी राष्ट्र विरोधी टूल किट नहीं तो और क्या है?

खैर! अगर किसान फिर आ ही रहे हैं, तो सरकार भी दोबारा उनका स्वागत करने के लिए तैयार है। फिर लाठी-गोली से तैयार है। इंटरनैट वगैरह बंद करा के तैयार है। सड़कों पर कीलें बिछा कर तैयार है। रोड ब्लाक लगाकर तैयार है। जरूरत पड़े तो सड़कें खुदवा के भी तैयार है। किसानों को एंटी-नेशनल बताने वाले टूल किट चलाने के लिए तैयार है। पगड़ी वालों को फिर से खालिस्तानी बताने के लिए तैयार है। किसानों को मोदी विरोधियों का एजेंट बताने के लिए, पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने के रास्ते में रोड ब्लॉक वगैरह, वगैरह बताने के लिए तैयार है। अपने विरोध को, खाते-पीते किसानों की, गरीब किसानों के खिलाफ साजिश, साबित कर के दिखाने के लिए भी तैयार है।

फिर भी किसान आ रहे हैं, यह सोच-सोचकर ही श्रीमान छप्पन इंच बौखला रहे हैं। चुनाव सिर पर हैं और दरवाजे पर ये मुसीबत! किसान दिल्ली के बार्डर तक पहुंच जाएंगे, तो इस बार भी कुछ-न-कुछ लेकर ही जाएंगे। पिछली बार यूपी का चुनाव था, तो इस बार तो पूरे देश का चुनाव है! और जब तक बैठे रहेंगे, तब तक अमृतकाल तो अमृतकाल, रामलला को लाने के प्रचार में भी, पलीता लगाते रहेंगे। आधा दर्जन भारत रत्न भी किसी काम नहीं आएंगे।

✒️व्यंग्य:-राजेंद्र शर्मा(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)