वसंत ऋतु नव चेतना का ऋतु है:मुरलीमनोहर व्यास

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🔸बसंत महोत्सव के शुभारंभ

✒️रोशन मदनकर(उप संपादक)

चंद्रपुर(दि.23फेब्रुवारी):-पुष्टिमार्ग विज्ञाननिष्ठ मार्ग है।हिन्दु धर्म के सभी त्यौहार ऋतु परिवर्तन के समय पर आते है। बसंत पंचमी त्यौहार शिशीर और बसंत ऋतुओं के संगम कालमें आता है। इस मौसम में वातावरण में नव परिवर्तन आने लगता है।पतझड आकर पेड पौधों के पुराने पत्ते झड कर नये पत्ते आने लगते है।

वातावरण आल्हाद दायक हो जाता है।बसंत ऋतु नव चेतना का ऋतु है , ऐसे विचार चंद्रपुर के आध्यात्मिक चिंतक तथा साहित्यकार मुरलीमनोहर व्यास ने प्रतिपादित किये।श्री गोवर्धननाथ हवेली में बसंत महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर आप बोल रहे थे। बसंत पंचमी से होली तक चालीस दिनों चलने वाले इस महोत्सव में प्रतिदिन प्रभु रंग खेलेंगे।

श्री गोवर्धननाथ प्रभु के समक्ष महोत्सव का कलश स्थापित किया गया, जिसमें आम की बयार, गेहूं की बालीयां, विविध वनस्पतियां, विविध प्रकार के फुल लगाये गये। बसंत राग के पदों का गायन किया गया। अब होली तक राग बसंत, बसंत की धमार, होली के रसीया आदि के स्वर गुंजते रहेंगे।

प्रतिदिन दोपहर 11 -30 बजे राजभोग के दर्शनों में अबीर, गूलाल आदि रंगों से बसंत खेलाया जावेंगा।
व्यासजी ने कहा बसंत पंचमी के दिन संगीत तथा विद्या की देवी माता सरस्वती का प्रागट्य हूआ। काम देव का प्रागट्य भी बसंत पंचमी को हुआ। शिवजी द्वारा भष्म करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्नजी के रुप में काम देव का पुर्जन्म बसंत पंचमी के दिन ही हुआ।

काम देव का काम है जीव में तथा प्रकृति में नवनिर्माण की भावना जागृत करना। काम जीवन का अंग है, लेकिन उसे नियंत्रित रखना आवश्यक है, इसे नियंत्रण में रखने का सामर्थ्य केवल प्रभु कृपा से ही संभव है। अत: प्रभु की शरण में जाकर सेवा तथा भजन करना आवश्यक है।किसन भाई पंचोली, नरेंद्र भाई जोशी ने कलश पूजन कर प्रभु को रंग खीलाने के बाद आरती की। सभी प्रभु प्रेमी इस महोत्सव में उपस्थित रहकर आनंद लेने का आवाहन श्री गोवर्धननाथ हवेली ट्रस्ट के पदाधिकारीगणों ने किया है।