ईसाई धर्म से भी पुराना पतंग!

32

(पतंग महोत्सव का इतिहास)

पतंग यानि काइट, एक ऐसी चीज है जिसे हवा में उड़ते हुए देखना दिल को सुकून देता है। बिना किसी डर के, बिना किसी सीमा के उड़ती ही जाती है। अगर आप घंटो भी हवा में पतंगों को उड़ते हुए देखें तब भी आप उबेंगे नहीं। मनुष्य का हमेशा से उड़ने का सपना रहा है और उसी सपने को प्लेन, रॉकेट और पतंगों में डाल दिया गया है। निश्चय ही पतंग की शुरुआत ईसाई धर्म से भी पहले हो चुकी थी। यह महत्त्वपुर्ण लेख श्री कृष्णकुमार निकोडे गुरुजी के शब्दों में जरूर पढ़िएगा जी… 

करीबन 200 ईसा पूर्व चीन में पतंग का अविष्कार हुआ और वहीं से इसको उड़ाने की तकनीक ईजाद की गई। ह्यून त्सांग ने पतंग उड़ाकर दुशमन की सेना को डराना शुरू किया था। ह्यून त्सांग के सैनिक रात के वक्त पतंग उड़ाया करते थे, जिससे कि दुश्मन सेना बुरा साया समझ कर डर जाती और उसका मनोबल गिर जाता। धीरे धीरे ये फॉर्मूला इतना फेमस हो गया कि कई देश की सेनाओं ने एक दूसरे को संदेश भेजने के लिये शुरू कर दिया। वहीं 100 ईसा पूर्व आते आते सेनाएं दुश्मन के ठिकाने का पता लगाने के लिये पतंग का प्रयोग करते थे। 930वीं शताब्दी आते आते पतंग का नामकरण भी हो गया। इसे जापानी भाषा में शिरोशी कहा जाता था। शि का मतलब होता है पेपर और रोशी का मतलब डोर। 11वीं शताब्दी तक पतंग के साथ साथ मान्यताएं भी जुड़ने लगीं। चीन में ये इतनी मशहूर हो गई कि लोग नौंवे महीने की नौ तारीख को हवा में जरूर पतंग उड़ाते थे। पतंग उड़ाने के पीछे मकसद बुरी आत्माओं को बाहर भगाना होता था।

15वीं शताब्दी में पतंग ने भारत में कदम रखे। भारतीय साहित्य पर नज़र डालें तो मधुमालती में पहली बार पतंग शब्द का उपयोग किया गया था। जहाँ पतंग को प्रेम से जोड़ा गया था। 17वीं शताब्दी तक पतंग पूरी दुनिया में छा गई थी। पतंग को लेकर अलग अलग प्रयोग होने लगे। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने तो पतंग उड़ाकर ही बिजली की खोज की है। 18वीं शताब्दी में ऑस्ट्रेलियन डिजाइनर लारेंस हरग्रेव ने एक डिब्बे की तरह की पतंग बनाई और उसे अच्छे से उड़ाया। ये आइडिया पूरी दुनिया में छा गया। इसी की तर्ज पर प्लेन बनाने की प्रोत्साहना मिली थी। 18वीं शताब्दी के अंत में ग्राहम बेल ने छोटी छोटी लकड़ियों से जुड़ी एक टेट्रा पतंग बनाई। ये पतंग अलग अलग डिजाइन की थी और बहुत ही मनमोहक लगती थी।

पतंग ने भारत पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। इतनी गहरी की ये हमारी संस्कृति का हिस्सा ही बन गई। पतंगबाज़ी इतनी लोकप्रिय हुई कि कई कवियों ने इसपर कविताएँ भी रच डाली। भारत के राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में तो पतंगबाज़ी अब तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों के रूप में मनाई जाने लगी है। मकर संक्रांति के दौरान जयपुर के चौगान स्टेडियम में होने वालें पतंग महोत्सव में पर्व दरबारी पतंगबाज़ के परिवार वाले लोग, विदेशी पतंगबाज़ों से मुकाबला करते है। इसी तरह अहमदाबाद में गुजरात पर्यटन विभाग द्वारा सरदारपटेल स्टेडियम या पोलीस स्टेडियम में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव में कई तरह की प्रतियोगितायें खेली जाती है, जिसमे देश-विदेश से आए हुए लोग हिस्सा लेते है।

पतंग यानि काइट, एक ऐसी चीज है जिसे हवा में उड़ते हुए देखना दिल को सुकून देता है। बिना किसी डर के, बिना किसी सीमा के उड़ती ही जाती है। अगर आप घंटो भी हवा में पतंगों को उड़ते हुए देखें तब भी आप उबेंगे नहीं। मनुष्य का हमेशा से उड़ने का सपना रहा है और उसी सपने को प्लेन, रॉकेट और पतंगों में डाल दिया गया है। निश्चय ही पतंग की शुरुआत ईसाई धर्म से भी पहले हो चुकी थी।

!! पतंग महोत्सव की सभी को आनंदमयी ढेर सारी शुभकामनाएँ !!

✒️श्री कृष्णकुमार निकोडे गुरुजी.रामनगर वॉर्ड नं.20, गढचिरोली (महाराष्ट्र)सिर्फ व्हॉट्सएप- 9423714883.